कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ।।
अर्थ – श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फल पर तुम्हारा अधिकार नहीं है।
इसलिए कर्म के फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। इस श्लोक में कर्म का महत्व समझाया गया है।
हमें केवल कर्म पर ध्यान देना चाहिए। यानी अपना काम पूरी ईमानदारी से करें और गलत कामों से बचें।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत: ।
अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।
अर्थ – श्री कृष्ण कहते हैं कि जब भी ब्रह्मांड में धर्म की हानि होती है,
अर्थात अधर्म बढ़ता है, तब मैं धर्म की स्थापना के लिए अवतार लेता हूं।
जो अधर्म करते हैं, भगवान उनका नाश करते हैं,
इसलिए धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिए।
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ।।
अर्थ – कहा गया है कि आत्मा को कोई हथियार नहीं काट सकता,
आग नहीं जल सकती, पानी सोख नहीं सकता, हवा उसे सुखा नहीं सकती।
श्री कृष्ण ने अरुण से कहा कि शरीर बदलता रहता है, कभी नहीं मरता।
किसी को नहीं मरना चाहिए।