सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत् ।।
अर्थ -संसार में सभी सुखी हों, निरोगी हों, शुभ दर्शन हो और कोई भी ग्रसित ना हो.
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् ।
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।
अर्थ -हम सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा का ध्यान करते हैं, परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।
प्रभु आप ही इस सृष्टि के निर्माता हो, आप ही हम सब के दुःख हरने वाले हो, हमारे प्राणों के आधार हे परम पिता परमेश्वर, सृष्टि निर्माता मैंने आपका वर्ण कर रहा हूं।
यानि उस प्राण स्वरूप, दुःख नाशक, सुख स्वरुप श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देव स्वरुप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। परमात्मा हमारी बुद्धि को सत्मार्ग पर प्रेरित करें।
हे परम पिता परमेश्वर मैं आपसे यही प्रार्थना करता हूं कि मुझे सदबुद्धि देना और हमेशा सही मार्ग पर चलता रहूं।
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
अर्थ- जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा धात्री और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदंबे आपको मेरा नमस्कार है।
1. जयंती सर्वोत्कर्षेण वर्तते इति ‘जयंती’-सबसे उत्कृष्ट एवं विजयशालिनी देवी जयंती हैं।
2. मंगंल जनम मरणादिरूपं सर्पणं भक्तानां लाति गृहणाति या सा मंगला मोक्षप्रदा-जो अपने भक्तों को जन्म-मरण आदि संसार-बंधन से दूर करती है, उन मोक्षदायिनी मंगलदेवी का नाम मंगला है।
3. कलयति भक्षयति प्रलयकाले सर्वभ् इति काली- जो प्रलयकाल में संपूर्ण सृष्टि को अपना ग्रास बना लेती है, वह काली है।
4. भद्रं मंगलं सुखं वा कलयति स्वीकरोति भक्तेभ्योदातुम् इति भद्रकाली सुखप्रदा-जो अपने भक्तों को देने के लिए ही भद्र सुख या मंगल स्वीकार करती है, वह भद्रकाली है।
5. जिन्होंने हाथ में कपाल तथा गले में मुण्डों की माला धारण कर रखी है, वह कपालिनी है।
6. दु:खेन अष्टड्गयोगकर्मोपासनारूपेण क्लेशेन गम्यते प्राप्तते या- सा दुर्गा- जो अष्टांगयोग, कर्म एवं उपासना रूप दु:साध्य से प्राप्त है, वे जगदंबा ‘दुर्गा’ है।
7. क्षमते सहते भक्तानाम् अन्येषां वा सर्वानपराघशान् जननीत्वेनातिशय-करुणामयस्वभावदिति क्षमा- संपूर्ण जगत् की जननी होने से अत्यंत करुणामय स्वभाव होने के कारण (क्योंकि माँ करुणामय होती है।) जो भक्तों को एवं दूसरों के भी अपराध क्षमा करती हैं, ऐसी देवी का नाम ही क्षमा है।
8. जिस प्रकार नाम वैसे ही भगवती का कार्य है। सबका कल्याण (शिव) करने वाली जगदम्बा को शिवा कहते हैं।
9. संपूर्ण पंच शुभ वस्तुएं धारण करने वाली भगवती का नाम धात्री है।
10. स्वाहा रूप में (भक्तों से) यज्ञ भाग ग्रहण करके देवताओं का पोषण करने वाली देवी स्वाहा है।
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
अर्थ- हे नारायणी तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगल मयी हो।
कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को) सिद्ध करने वाली हो।
शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो।
हे माँ दुर्गा आपके श्री चरणों मे नमस्कार है
या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ-जो देवी सभी प्राणियों में माता के रूप में विराजमान हैं, उनको बारंबार नमस्कार, नमस्कार, नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ-जो देवी सभी प्राणियों में शक्ति रूप में विराजमान हैं, उनको बारंबार नमस्कार, नमस्कार, नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ-जो देवी सभी प्राणियों में लक्ष्मी, वैभव रूप में विराजमान हैं,
उनको बारंबार नमस्कार, नमस्कार, नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धि-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ-जो देवी सभी प्राणियों में बुद्धि के रूप में विराजमान हैं, उनको बारंबार नमस्कार, नमस्कार, नमस्कार है।
अहिल्या द्रौपदी सीता तारा मंदोदरी तथा
पंचकन्या ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम्
अर्थ-गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या, पांडवों की पत्नी द्रौपदी, प्रभु रामचंद्र की पत्नी सीता, राजा हरिश्चंद्र की पत्नी तारामती व रावण की पत्नी मंदोदरी, इन पांच कन्याओ का जो स्मरण करता है, उसके महापातक नष्ट होते हैं.
1.अहिल्या – ऋषि गौतम कि पत्नी जिन्हें गौतम ऋषि ने पत्थर बन जाने का श्राप दिया,और भगवान श्री राम ने अपने चरण के स्पर्श से उन्हें फिर से नारी
बना दिया था.
2.द्रौपदी – राजा द्रुपद की पुत्री तथा पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी को सती के साथ ही पंच कुवांरी कन्याओं में भी शामिल किया जाता है.
3.सीता – भगवान श्री रामचंद्र जी की पत्नी सीता,जब प्रभु श्री राम को वनवास हुआ तो वनवासी वस्त्र धारण करके अपने पति श्री राम के साथ महलों के सब सुख त्यागकर १४ वर्ष वन में रही.
4.मंदोदरी – मंदोदरी लंकापति रावण की पत्नी थी. हेमा नाम की अप्सरा के गर्भ से मंदोदरी ने जन्म लिया तथा रावण की प्रधान पटरानी बनी.मंदोदरी ही इन्द्रजीत मेघनाद की माता तथा मयासुर की कन्या थी.रावण को सदा अच्छी सलाह देती थी.पंच सती में शामिल होने के साथ-साथ इनकी गणना भी पंचकन्याओं में की जाती है.
5.तारामती – सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की पत्नी तारामति,जब राजा हरिश्चन्द्र ने अपना राज्य विश्वामित्र जी को दिया तो राजा कंगालो की भांति राज्य से चले गए और अपना दिया हुआ वचन पूरा करने के लिए अपनी पत्नी और बेटे को भी बेच दिया