गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वराय ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म: तस्मै श्री गुरवे नमः ।।
अर्थ -गुरू ही ब्रह्मा हैं, गुरू ही विष्णु हैं, गुरू ही शंकर है, गुरू ही साक्षात परमब्रह्म हैं। ऐसे गुरू का मैं नमन करता हूं.।
ध्यानमूलं गुरूरर्मूर्ति: पूजामूलं गुरो: पदम्।
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं: मोक्षमूलं गुरो: कृपा।।
ध्यानमूलं गुरोर्मूर्ति: पूजामूलं गुरो: *पदम्।
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं: मोक्षमूलं गुरो: कृपा।। ।।
अर्थ – गुरु का ध्यान ही सब ध्यानों का मूल है,
गुरु चरणकमल पूजन ही सब पूजाओं का मूल है,
गुरुवाक्य ही सब मन्त्रों का मूल है,
गुरुकृपा ही मोक्ष प्राप्ति का प्रधान मूल साधन है।।
ब्रह्मानंदम परम सुखदम, केवलम् ज्ञानमूर्तीम्।
द्वंद्वातीतम् गगन सदृशं, तत्वमस्यादि लक्षम।।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभुतं।
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि॥
अर्थ -ब्रह्म के आनंदरुप परम् सुखरुप, ज्ञानमूर्ति, द्वंद्व से परे, आकाश जैसे निर्लेप, और सूक्ष्म “तत्त्वमसि” इस ईशतत्त्व की अनुभूति ही जिसका लक्ष्य है; अद्वितीय, नित्य विमल, अचल, भावातीत, और त्रिगुणरहित – ऐसे सद्गुरु को नमन.