ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बंधनन्मृत्योम्रुक्षीय मामृतात् ।
अर्थ – हे ईश्वर, जिसके तीन नेत्र हैं, वह प्रेम, आदर और श्रद्धा से पूजे जाते हैं, जिसके पास संसार की सारी सुगंध है, जिसका स्वभाव मधुर है, जो पूर्ण है, जिसके कारण स्वस्थ जीवन है, जो विनाश करता है रोग, लालसा और बुराई, जिससे जीवन समृद्ध होता है। हो जाता। उस अमर से प्रार्थना है कि वह हमारी सारी बेड़ियों को काटकर हमें मोक्ष का मार्ग दिखा सके।
कर्पूरगौरव करुणावतारं संसार सारं भुजगेन्द्रहारम
सदाय सन्तं हृदयारविन्दे भवम भवानी सहितं नमामि ।
अर्थ – जो कर्पूर के समान पवित्र और श्वेत है और करुणा और दया का स्वरूप है, उसमें सारा संसार समाया हुआ है, जिसने सर्प को हार के समान धारण किया है, जो संसार के कोने-कोने में विराजमान है, जिसके हृदय में वास है। माँ भवानी की, ऐसे भगवान शिव और माँ पार्वती को मेरा प्रणाम।।
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् ।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं ममलेश्वरम् ॥
परल्यां वैजनाथं च डाकियन्यां भीमशंकरम् ।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥
वारणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे ।
हिमालये तु केदारं ध्रुष्णेशं च शिवालये ॥
एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः ।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरेण विनश्यति ॥
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै न काराय नमः शिवायः॥
अर्थ – जिनके कण्ठ में सर्पों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अंगराग है और दिशाएँ ही जिनका वस्त्र हैं अर्थात् जो दिगम्बर (निर्वस्त्र) हैं ऐसे शुद्ध अविनाशी महेश्वर न कारस्वरूप शिव को नमस्कार है।
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै म काराय नमः शिवायः॥
अर्थ – गङ्गाजल और चन्दन से जिनकी अर्चना हुई है, मन्दार-पुष्प तथा अन्य पुष्पों से जिनकी भलिभाँति पूजा हुई है। नन्दी के अधिपति, शिवगणों के स्वामी महेश्वर म कारस्वरूप शिव को नमस्कार है।।
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नमः शिवायः॥
अर्थ – जो कल्याणस्वरूप हैं, पार्वतीजी के मुखकमल को प्रसन्न करने के लिए जो सूर्यस्वरूप हैं, जो दक्ष के यज्ञ का नाश करनेवाले हैं, जिनकी ध्वजा में वृषभ (बैल) का चिह्न शोभायमान है, ऐसे नीलकण्ठ शि कारस्वरूप शिव को नमस्कार है।।
वसिष्ठ कुम्भोद्भव मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नमः शिवायः॥गौतमार्य।।
अर्थ – वसिष्ठ मुनि, अगस्त्य ऋषि और गौतम ऋषि तथा इन्द्र आदि देवताओं ने जिनके मस्तक की पूजा की है, चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं, ऐसे व कारस्वरूप शिव को नमस्कार है।।
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नमः शिवायः॥
अर्थ – जिन्होंने यक्ष स्वरूप धारण किया है, जो जटाधारी हैं, जिनके हाथ में पिनाक है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, ऐसे दिगम्बर देव य कारस्वरूप शिव को नमस्कार है।
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।
शिवलोक मवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
अर्थ -जो शिव के समीप इस पवित्र पञ्चाक्षर स्तोत्र का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त होता है और वहाँ शिवजी के साथ आनन्दित होता है।
ॐ वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं, वन्दे जगत्कारणम् l
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं, वन्दे पशूनां पतिम् ll
वन्दे सूर्य शशांक वह्नि नयनं, वन्दे मुकुन्दप्रियम् l
वन्दे भक्त जनाश्रयं च वरदं, वन्दे शिवंशंकरम् ll
अर्थ – हे उमा पति, सम्पूर्ण विश्व के स्वामी, संसार के कारक, एक हाथ में हिरण लिए, पशुओं के स्वामी, नयनों में सूर्य, चंद्रमा, अग्नि एंव तारे वाहक मुकुंद प्रिय, भक्तों के जीवन दाता शिव शंकर को मेरा वंदन.