अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
अर्थ: अतुलित बल के स्वामी, विशालकाय पर्वत के समान देह वाले, अग्नि रूप से दानववनों का संघार करने वाले, ज्ञानियों मे अग्रणी, सकल गुणों के स्वामी, वानरों मे प्रमुख, श्री राम के प्रिय भक्त वायुपुत्र को नमन।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।।
अर्थ -मन एंव वायु के समान गति वाले, जो परम जितेंद्रियों और सर्व बुद्धिमान हैं, उन पवनपुत्र वानर श्रेष्ठ एंव श्रीरामदूत को आग्रह है की हमे अपनी शरण मे लें।